Kho Kho और ये kho kho Players भारत की संस्कृति में रचा-बसा एक ऐसा पारंपरिक खेल है, जिसकी धड़कन हर खुले मैदान में सुनाई देती है। दो टीमों के बीच खेले जाने वाला यह खेल दौड़ने-भागने, छूने-बचाने और बुद्धि-चुस्ती का अनोखा मेल है।
खो-खो: दौड़ता हुआ उत्साह, उछलता हुआ जोश – एक अनूठा भारतीय खेल
बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी को बांध लेने वाली इस मजेदार प्रतियोगिता में न सिर्फ शारीरिक कौशल की परीक्षा होती है, बल्कि टीम भावना और रणनीति भी जीत की कुंजी बनते हैं।
Kho Kho Rules
खो-खो एक प्राचीन भारतीय खेल है जो दो टीमों के Kho Kho Players के बीच खेला जाता है। खेल का उद्देश्य विपक्षी टीम के खिलाड़ियों को छूकर अंक अर्जित करना होता है।
Kho Kho Ground
खो-खो का मैदान आयताकार होता है, जिसकी लंबाई 111 फीट और चौड़ाई 51 फीट होती है। मैदान के दोनों सिरों पर 5 फीट ऊंचे खंभे गाड़े जाते हैं। खंभों के बीच की दूरी 25 फीट होती है। मैदान के बीचों-बीच एक लाल रंग का चिह्न बनाया जाता है, जिसे “खो” कहा जाता है।
Top Kho Kho Players
प्रत्येक टीम में 12 Kho Kho Players हैं, जिनमें से 9 Kho Kho Players खेलते हैं और 3 Kho Kho Players अतिरिक्त होते हैं।
खो-खो जगत में अनेक प्रतिभाशाली Kho Kho Players मौजूद हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब नाम कमाया है. उनके योगदान ने खेल को लोकप्रियता की नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है. यहां कुछ शीर्ष Kho Kho Players की सूची है, जिनके नाम किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं:
Male Kho Kho Players
Satish Rai: सतीश राय को सबसे प्रमुख खो खो खिलाड़ियों में से एक माना जाता है। वह एक मजबूत, फिट, समर्पित और सचेत खिलाड़ी हैं।
Pankaj Malhotra: पंकज मल्होत्रा एक और प्रमुख भारतीय खो खो खिलाड़ी हैं।
Praveen Kumar: प्रवीण कुमार कर्णाटक के मैसूर से एक कुशल और प्रमुख खो खो खिलाड़ी में से हैं।
Female Kho Kho Players
Sarika Kale: सारिका काळे एक महाराष्ट्र आधारित खो खो खिलाड़ी थीं जो 2010 में महाराष्ट्र महिला राज्य खो खो टीम की कप्तान बनीं। उन्हें 2015 में भारतीय महिला राष्ट्रीय खो खो टीम की कप्तान घोषित किया गया और उन्होंने टीम को दक्षिण एशियाई खेल और तृतीय एशियाई खो-खो चैम्पियनशिप में जीत की दिलाई।
Mandakini Majhi: मंदाकिनी माझी, जिसे उड़ीसा की लड़की भी कहा जाता है, एक प्रमुख खो खो खिलाड़ी हैं जो उड़ीसा से हैं। उन्होंने भारतीय महिला राष्ट्रीय खो खो टीम में शामिल होकर 12वें दक्षिण एशियाई संघ खेलों में प्रतिस्पर्धा की।
यह सूची निश्चित नहीं है, खो-खो जगत में अनेक अन्य Kho Kho Playersभी अपने कौशल और प्रतिभा से लगातार प्रभावित कर रहे हैं. खेल का भविष्य उज्ज्वल दिखता है, जिसमें युवा Kho Kho Players नई ऊर्जा और उत्साह के साथ जुड़ रहे हैं.
खेल का प्रारंभ
खेल की शुरुआत सिक्का उछालकर की जाती है। सिक्का जीतने वाली टीम को चुनना होता है कि वह पहले “छुई” बनेगी या “बैठेगी”।
Kho Kho Rules
- छुई बनने वाली टीम के 3 खिलाड़ी बारी-बारी से “छुई” बनते हैं।
- बैठने वाली टीम के Kho Kho Players दो पंक्तियों में बैठे होते हैं।
- छुई खिलाड़ी को विपक्षी टीम के बैठे हुए खिलाड़ियों को छूना होता है।
- अगर छुई किसी खिलाड़ी को छू लेता है, तो वह खिलाड़ी आउट हो जाता है।
- लेकिन बैठे हुए खिलाड़ी भी निष्क्रिय नहीं होते। वे “खो” के आसपास दौड़कर छुई को छूने से खुद को बचाने की कोशिश करते हैं।
- इसके लिए वह अपने ही टीम के किसी दौड़ते हुए खिलाड़ी को छू कर उसे “जीवित” कर सकता है।
- “जीवित” हुआ खिलाड़ी दौड़ में शामिल हो जाता है और छुई को छूकर बचाव का यज्ञ जारी रखता है।
खेल का अंत
- प्रत्येक टीम को दो पारियां खेलने का मौका मिलता है।
- प्रत्येक पारी में 9 मिनट का समय होता है।
- दोनों पारियों के बाद जिस टीम के अधिक खिलाड़ी जीवित रहते हैं, वह टीम विजेता होती है।
खेल के महत्व
खो-खो एक सरल और रोमांचक खेल है, जो शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से लाभकारी है। यह खेल टीम भावना, रणनीति और प्रतिस्पर्धा की भावना को विकसित करता है।
Kho Kho खेलने का तरीका
खो-खो के मैदान की रूपरेखा बेहद सरल है। एक आयताकार मैदान के दोनों सिरों पर खंभे गाए जाते हैं। 12 खिलाड़ियों की दो टीमें होती हैं, एक दौड़ने वाली और एक बैठने वाली। दौड़ने वाली टीम के 3 खिलाड़ी बारी-बारी से ‘छुई’ बनते हैं और पकड़ने का खेल शुरू होता है। बैठने वाली टीम के खिलाड़ी दो पंक्तियों में बैठे होते हैं। मैदान के बीचों-बीच ‘खो’ नाम का लाल चिह्न बना होता है।
Kho Kho Players को विपक्षी टीम के बैठे हुए खिलाड़ियों को छूना होता है। अगर छुई किसी खिलाड़ी को छू लेता है, तो वह खिलाड़ी आउट हो जाता है। लेकिन बैठे हुए खिलाड़ी भी निष्क्रिय नहीं होते। वे ‘खो’ के आसपास दौड़कर छुई को छूने से खुद को बचाने की कोशिश करते हैं। इसके लिए वह अपने ही टीम के किसी दौड़ते हुए खिलाड़ी को छू कर उसे ‘जीवित’ कर सकता है। ‘जीवित’ हुआ खिलाड़ी दौड़ में शामिल हो जाता है और छुई को छूकर बचाव का यज्ञ जारी रखता है।
Kho Kho Players यही खींचतान, पकड़ने का जाल, छूने की कोशिश और बचने का हुनर खो-खो की जान है। मैदान में खिलाड़ियों की फुर्ती देखकर आंखें चकरा जाती हैं। एक तरफ छुई खिलाड़ी तेजी से दौड़ता हुआ हर मौका भुनाने की कोशिश में रहता है, तो दूसरी तरफ बैठे हुए खिलाड़ी ‘खो’ के इर्द-गिर्द घूमते हुए छूने से बचने की रणनीति बनाते हैं। हर ‘टच’ के साथ अंक मिलते हैं और हर आउट टीम के उत्साह में कमी लाता है। यही उतार-चढ़ाव, यह अनिश्चितता खो-खो को रोमांचक बनाती है।
Ultimate Kho Kho:
Ultimate Kho Kho 2018 में लॉन्च किया गया था. इसमें तेज गति, रणनीति और मनोरंजन का अनूठा मिश्रण है. इसे पारंपरिक खो-खो के नियमों में थोड़ा बदलाव करके तैयार किया गया है, जिससे खेल और भी रोमांचक बन गया है.
Ultimate Kho Kho की कुछ खास बातें:
- 8-8 खिलाड़ियों की दो टीमें खेलती हैं.
- मैदान का आकार पारंपरिक खो-खो से छोटा (70 मीटर लंबा और 25 मीटर चौड़ा) होता है.
- प्रत्येक टीम में तीन “वजीर” होते हैं, जो विशेष शक्तियों का उपयोग कर सकते हैं.
- मैच दो 12 मिनट के halves में खेला जाता है.
- हर अंक के लिए एक स्कोरबोर्ड पर लाइटें जलती हैं.
क्यों देखें Ultimate Kho Kho?
- तेज गति और रोमांच: खिलाड़ी मैदान पर बिजली की तरह दौड़ते हैं और आश्चर्यजनक छलांग लगाते हैं.
- रणनीति और चतुराई: टीमों को जीत के लिए रणनीति बनानी चाहिए और अपने वजीरों की शक्तियों का सही इस्तेमाल करना चाहिए.
- मनोरंजन और मस्ती: यह एक ऐसा खेल है जिसे देखकर पूरा परिवार मजा ले सकता है.
- भारतीय खेल को बढ़ावा: अल्टीमेट खो-खो भारत के पारंपरिक खेल को एक आधुनिक रूप देता है और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाने में मदद करता है.
Where to Watch Ultimate kho kho
अल्टीमेट खो-खो के दूसरे सीजन का आयोजन दिसंबर 2023 से ओडिशा में हुआ था. आप आगामी सीज़न के बारे में जानकारी और मैचों के लाइव प्रसारण Sony SIX और सोनी लिव ऐप पर देख सकते हैं.
Kho Kho का इतिहास
खो-खो का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति महाराष्ट्र में ‘राथेरा’ नामक खेल से हुई थी। राथेरा खेल में, दो टीमें रथों पर सवार होकर एक-दूसरे के खिलाड़ियों को छूने की कोशिश करती थीं।
19वीं सदी के अंत में, खो-खो को आधुनिक रूप दिया गया। 1914 में, पुणे के डेक्कन जिमखाना क्लब में खो-खो के लिए औपचारिक नियम और कानून बनाए गए। इन नियमों के अनुसार, खो-खो का मैदान आयताकार होता है, जिसकी लंबाई 111 फीट और चौड़ाई 51 फीट होती है। मैदान के दोनों सिरों पर 5 फीट ऊंचे खंभे गाड़े जाते हैं। खंभों के बीच की दूरी 25 फीट होती है। मैदान के बीचों-बीच एक लाल रंग का चिह्न बनाया जाता है, जिसे “खो” कहा जाता है।
खो-खो का पहला राष्ट्रीय चैंपियनशिप 1928 में पुणे में आयोजित किया गया था। तब से, खो-खो भारत में एक लोकप्रिय खेल बन गया है। खो-खो को 1936 के बर्लिन ओलंपिक में प्रदर्शनी खेल के रूप में भी दिखाया गया था।
आज, खो-खो को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेला जाता है। खो-खो फेडरेशन ऑफ इंडिया (KFI) खो-खो का राष्ट्रीय निकाय है। KFI खो-खो के नियमों और कानूनों को नियंत्रित करता है और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं का आयोजन करता है।
खो-खो एक सरल और रोमांचक खेल है, जो शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से लाभकारी है। यह खेल टीम भावना, रणनीति और प्रतिस्पर्धा की भावना को विकसित करता है।
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